Bhartiya Samvidhan Ka Itihas (1773 to 1947) Complete Information
Bhartiya Samvidhan Ka Itihas: Hello Friend’s आज के इस Article में हम हमारे Bhartiya Samvidhan Ka Itihas के बारे में जानेंगे जिससे हम अपने Samvidhan को और ज्यादा अच्छी तरह से जान सकें।
Bhartiya Samvidhan Ka Itihas
भारतीय संविधान के विकास का संक्षिप्त इतिहास: 1757 ई. की प्लासी की लड़ाई और 1764 ई. के बक्सर युद्ध को अंग्रेजों द्वारा जीत लिए जाने के बाद बंगाल पर ब्रिटिश ईस्ट इन्डिया कंपनी ने शासन का शिकंजा कास लिए। इसी शासन को अपने अनुकूल बनाए रखने के लिए अंग्रेजों ने समय-समय पर कई ऐक्ट पारित किये, जो भारतीय संविधान के विकास की सीढियाँ बनीं। “Bhartiya Samvidhan Ka Itihas”
1773 ई. का रेग्युलेटिंग एक्ट
इस एक्ट के अंतर्गत कलकत्ता प्रेसीडेंसी में एक ऐसी सरकार स्थापित की गयी, जिसमें गवर्नर जनरल और उसकी परिषद् के चार सदस्य थे, जो अपनी सत्ता का उपयोग संयुक्त रूप से करते थे।
Important of Bhartiya Samvidhan Ka Itihas 1773
1773 एक्ट की मुख्य विषेशताएं
- कम्पनी के शासन पर संसदीय नियंत्रण स्थापित किया गया।
- बंगाल के गवर्नर को तीनों प्रेसिडेंसी का गवर्नर जनरल नियुक्त किया गया।
- कलकत्ता में एक सुप्रीम कोर्ट की स्थापना की गयी।
1784 ई. का पिट्स इण्डिया एक्ट
- इस एक्ट के द्वारा दोहरे प्रशासन का प्रारम्भ हुआ-
- कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स- व्यापारिक मामलों के लिए।
- बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स- राजनितिक मामलों के लिए।
1793 ई. का चार्टर अधिनियम
इसके द्वारा नियंत्रण बोर्ड के सदस्यों तथा कर्मचारियों के वेतनादि को भारतीय राजस्व में से देने की व्यवस्था की गयी।
1813 ई. का चार्टर अधिनियम
इसके द्वारा विभिन्न नियमों को लागू किया गया जैसे:-
- कंपनी के अधिकार पात्र को 20 वर्षों के लिए बढ़ा दिया गया।
- कंपनी के भारत के साथ व्यापार करने के एकाधिकार को छीन लिया गया। किन्तु उसे चीन के साथ व्यापार और पूर्वी देशों के साथ चाय के व्यापर के संबंध में 20 वर्षों के लिए एकाधिकार प्राप्त रहा।
- कुछ सीमाओं के आधीन सभी ब्रिटिश नागरिकों के लिए भारत के साथ व्यापार खोल दिया गया।
1833 ई. का चार्टर अधिनियम
1833 अधिनियम के अनुसार निम्न बदलाव किये गए-
- इसके द्वारा कम्पनी के व्यापारिक अधिकार पूर्णतः समाप्त कर दिए गए।
- अब कंपनी का कार्य ब्रिटिश सर्कार की और से मात्र भारत का शासन करना रह गया।
- बंगाल के गवर्नर जेनरल को भारत का गवर्नर जेनरल कहा जाने लगा।
- भारीय कानूनों का वर्गीकरण किया गया तथा इस कार्य के लिए विधि ायोक की नियुक्ति की व्यवस्था की गयी।
1853 ई. का चार्टर अधिनियम
इस अधिनियम के द्वारा सेवाओं में नामजदगी का सिद्धांत समाप्त कर कंपनी के महत्वपूर्ण पदों को प्रतियोगी परीक्षाओं के आदर पर बर्न की व्यवस्था की गयी।
1858 ई. का चार्टर अधिनियम
इस अधिनियम के अनुसार निम्न परिवर्तन किये गए-
- भारत का शासन कंपनी से लेकर ब्रिटिश क्राउन के हांथों में सौंप दिया गया।
- भारत में मंत्री-पद की व्यवस्था की गयी।
- पंद्रह सदस्यों की भारत-परिषद् का सृजन हुआ।
- भारतीय मामलों पर ब्रिटिश संसद का सीधा नियंत्रण स्तापित किया गया।
1861 ई. का भारत शासन अधिनियम
इस अधिनियम के द्वारा निम्न परिवर्तन किये गए-
- गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी परिषद् का विस्तार किया गया।
- विभागीय प्रणाली का प्रारम्भ हुआ।
- गवर्नर जनरल को पहली बार अध्यादेश जारी करने की शक्ति प्रदान की गयी।
- गवर्नर जेनरल को बंगाल, उत्तर पश्चिमी सिमा प्रान्त और पंजाब में विधान परिषद् स्थापित करने की शक्ति प्रदान की गयी।
1892 ई. का भारत शासन अधिनियम
इस अधिनियम के माध्यम से निम्न परिवर्तन किये गए-
- अप्रत्यक्ष चुनाव-प्रणाली की शुरुवात हुई
- इसके द्वारा राजस्व एवं व्यय अथवा बजट पर बहस करने तथा कार्यप्रणाली से प्रश्न पूछने की शक्ति दी गयी।
1909 ई. का भारत शासन अधिनियम (मार्ले मिन्टो सुधार)
इस अधिनियम को लागु करके निम्न परिवर्तन किये गए-
- पहली बार मुस्लिम समुदाय के लिए पृथक प्रतिनिधित्व का उपबन्ध किया गया।
- भारतियों को भारत सचिव एवं गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी परिषदों में नियुक्ति की गयी।
- केंद्रीय और प्रान्तीय विधान-परिषदों को पहली बार बजट पर वाद-विवाद करने, सार्वजानिक हिट के विषयों पर प्रस्ताव पेश करने, पूरक प्रश्न पूछने और मत देने का अधिकार मिला।
- प्रान्तीय विधान-परिषदों की संख्या में वृद्धि की गयी।
1919 ई. का भारत शासन अधिनियम (मांटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधर)
इस अधिनियम के द्वारा निम्न सुधर किये गए-
केंद्र में द्वीसदन्त कम विधायिका की स्थापना की गयी- प्रथम राजयपरिषद तथा दूसरी केंद्रीय विधानसभा। राज्य परिषद् के सदस्यों की संख्या 60 थी; जिसमें 34 निर्वाचित होते थे और उनका कार्यकाल 5 वर्ष का होता था। केंद्रीय विधानसभा के सदस्यों की संख्या 145 थी, जिनमें 104 निर्वाचित तथा 41 मनोनीत होते थे। इनका कार्यकाल 3 वर्ष का था। दोनों सदनों के अधिकार समान थे। इनमें सिर्फ एक अन्तर था कि बजट पर स्वीकृति प्रदान करने का अधिकार निचले सदन को था।
प्रांतों में द्वैध शासन प्रणाली का प्रवर्तन किया गया। इस योजना के अनुसार प्रांतीय विषयों को दो उपवर्गों में विभाजित किया गया- (a) आरक्षित और (b) हस्तांतरित।
- आरक्षित विषय- वित्त, भूमिकर, अकाल सहायता, न्याय, पुलिस, पेंशन, आपराधिक जातियाँ, छापाखाना, समाचारपत्र, सिंचाई, जलमार्ग, खान, कारखाना, बिजली, गैस, व्यालार, श्रमिक कल्याण, औधोगिक विवाद, मोटरगाड़ियाँ, छोटे बंदरगाह और सार्वजानिक सेवाएं आदि।
- हस्तांतरित विषय- शिक्षा, पुस्तकालय, संग्राहलय, स्थानीय स्वायत शासन, चिकित्सा सहायता।
- सार्वजानिक निर्माण विभाग, आबकारी, उद्योग, तौल तथा माप, सार्वजानिक मनोरंजन पर नियंत्रण, धार्मिक तथा अग्रहार दान आदि।
- आरक्षित विषय का प्रशासन गवर्नर अपनी कार्यकारी परिषद् के माध्यम से करता था; जबकि हस्तांत्रित विषय का प्रशासन प्रांतीय वविधानमण्डल के प्रति उत्तरदायी भारतीय मंत्रियों के द्वारा किया जाता था।
- द्वैध शासन प्रणाली को 1935 ई. के एक्ट द्वारा समाप्त कर दिया गया।
- भारत सचिव को अधिकार दिया गया कि वह भारत में महालेखा परीक्षक की नियुक्ति कर सकता है।
- इस अधिनियम ने भारत में एक लोक सेवा आयोग के गठन का प्रावधान किया।
1935 ई. का भारत अधिनियम
1935 ई. के अधिनियम में 451 धाराएँ और 15 प्रिशिस्ट थे। इस अधिनियम की मुख्य विषेशताएं इस प्रकार है-
- अखिल भारतीय संघ- यह संघ 11 ब्रिटिश प्रांतों, 6 चीफ कमिश्नर के क्षेत्रों और उन देशी रियासतों से मिलकर बनना था, जो स्वेच्छा से संघ में सम्मिलित हों। प्रांतों के लिए संघ में सम्मिलित होना अनिवार्य था, किंदु देशी रियासतों के लिए यह ऐच्छिक था। देशी रियासतें संघ में सम्मिलित नहीं हुई और सरस्तवित संघ की स्थापना-सम्बन्धी घोषणा पात्र जारी करने का अवसर ही नहीं आया।
- प्रांतीय स्वायत्ता- इस अधिनियम के द्वारा प्रांतों में द्वैध शासन व्यवस्था का अंत कर उन्हें एक स्वतंत्र और स्वशासित संवैधानिक आधार प्रदान किया गया।
- केंद्र में द्वैध शासन की स्थापना- कुछ संघीय विषयों (सुरक्षा, वैदेशिक संबंध, धार्मिक मामले) को गवर्नर जेनरल के हांथों में सुरक्षित रखा गया। अन्य संघीय विषयों की व्यवस्था के लिए गवर्नर जनरल को सहायता एवं परामर्श देने हेतु मंत्रिमंडल की व्यवस्था की गयी, जो मंत्रिमंडल व्यवस्तापिका के प्रति उत्तरदायी था।
- संघीय न्यायलय की व्यवस्था- इसका अधिकार क्षेत्र प्रांतों तथा रियासतों तक विस्तृत था। इस न्यायलय में एक मुख्य न्यायाधीश तथा दो अन्य न्यायाधीशों की व्यवस्था की गयी। न्यायलय से सम्बंधित अंतिम शक्ति प्रिवी कौंसिल (लन्दन) को प्राप्त थी।
- ब्रिटिश संसद की सर्वोच्छ्ता- इस अधिनियम में किसी भी प्रकार के परिवर्तन का अंधकार ब्रिटिश संसद के पास था। प्रांतीय विधान मंडल और संघीय व्यवस्थापिका- इसमें किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं कर सकते थे।
- भारत परिषद् का अन्त- इस अधिनियम के द्वारा भारत परिषद् का अन्त कर दिया गया।
- सांप्रदायिक निर्वाचन पद्धति का विस्तार- संघीय तथा प्रांतीय व्यवस्थापिकाओं में विभिन्न सम्प्रदायों को प्रतिनिधित्व देने के लिए साम्प्रदायिक निर्वाचन पद्धति को जारी रखा गया और उसका विस्तार ांगल भारतीयों- भारतीय ईसाईयों, यूरोपियनों और हरिजनों के लिए भी किया गया।
- इस अधिनियम में प्रस्तावना का आभाव था।
- इसके द्वारा बर्मा को भारत से अलग कर दिया गया। अदन को इंग्लैण के औपनिवेशिक कार्यालय के आधीन कर दिया गया और बरार को मध्य प्रान्त में शामिल कर लिया गया।
1947 का भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम
ब्रिटिश संसद में 4 जुलाई, 1947 ई. को भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम प्रस्तावित किया गया, जो 18 जुलाई, 1947 को स्वीकृत हो गया। इस अधिनियम में 20 धाराएं थी। इस अधिनियम के प्रवधान निम्न हैं-
- दो अधिराज्यों की स्थापना- 15 अगस्त 1947 ई. को भारत एवं पाकिस्तान नामक दो अधिराज्य बना दिए जाएँगे, और उनको ब्रिटिश सरकार सत्ता सौंप देंगी। सत्ता का उत्तरदियित्व दोनों अधिराज्यों की संविधान सभा को सौंपी जाएगी।
- भारत एवं पाकिस्तान दोनों अधिराज्यों में एक-एक गवर्नर जनरल होंगे, जिनकी नियुक्ति उनके मंत्रिमंडल की सलाह से की जाएगी।
- संविधान सभा का विधानमंडल के रूप में कार्य करना- जब तक संविधान सभाएँ संविधान का निर्माण नहीं कर लेतीं, तब तक वे विधानमंडल के रूप में कार्य करती रहेगी।
- भारत-मंत्री के पद समाप्त कर दिए जाएंगे।
- 1935 ई. के भारतीय शासन अधिनियम द्वारा शासन जबतक संविधान सभा द्वारा नया संविधान बनाकर तैयार नहीं किया जाता है, तबतक उस समय 1935 ई. भारतीय शासन अधिनियम द्वारा ही शासन होगा।
- देशी रियासतों पर ब्रिटेन की सर्वोपरिता का अंत कर दिया गया। उनको भारत या पाकिस्तान किसी भी अधिराज्य में सम्मिलित होने और अपने भावी संबंधों का निश्चय करने की स्वतंत्रता प्रदान की गयी।
In Conclusion (Bhartiya Samvidhan Ka Itihas)
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